आजकल त्योहारों को मनाने से ज्यादा बचाने का दौर चल रहा है। जलीकट्टू, होली, दीवाली, बकरीद, दही हांडी सब के यही हालात है। सब प्रथाएं कठघरे में हैं। समस्या ये है कि समाज इसे तपाक से धर्म पर दखलंदाज़ी के तौर पर ले ले रही है।
धन्य है वो लोग भी जो इन प्रथाओं पर जनहित याचिका डाले जा रहे है। महानुभाव ने प्रदूषण नियंत्रण, जल संरक्षण, पशु प्रेम के क्षेत्र में कभी कुछ किया नही लेकिन प्रथाओं में से ये समस्या जरूर निकाल लेते है।
और धन्य है वो लोग भी जो आज के हालात के अनुसार थोड़ा बदलाव लाने में इतना प्रतिरोध करते हैं। अगर आप दीप जलाते, घर सजाते, रंगोली बनाते, पूजा करते, लोगो से मिलते जुलते, मिठाइयां खाते खिलाते तो क्या दीवाली अच्छी नही लगती? लेकिन नही! आपको तो इसे ईगो पर लेना है। धर्म की ठेकेदारी भी चलानी है तो आप तो इसे मुद्दा बनाएंगे ही।
फेसबुक पेज, व्हाट्सएप ग्रुप, हैशटैग और भी तरह तरह के कैम्पेन चलाए जा रहे है। बस अपनी जागरूकता, असहमति, नेतृत्व सब प्रदर्शित करने की होड़ लगी है। अब घर बैठे बैठे बिना कुछ किए चमकाने के मौका मिल रहा है तो चमका दो। नून भर कानून नही पता है लेकिन न्यायालय और सिस्टम पर ज्ञान प्रवचन और समीक्षा भभका दो एकदम से।
दोस्तो, सरकार प्रयास कर रही है कि प्रदूषण मुक्त पटाखे बनाए जाए। वैज्ञानिको से विमर्श चल रहा है इस संदर्भ में। लेकिन तब तक थोड़ा सा संयम रख लीजिए न। क्या बिगड़ जाएगा।
मैं बताऊ, पर्यावरण से ज्यादा प्रदूषण हम अपने फ़ोन में फैला रहे हैं। एक ही टाइप के मैसेज, GIF, वीडियो सब लोगो को फारवर्ड कर कर के गंध मचाना ठीक थोड़े न है। कोशिस करिए न इसे अवॉयड करें। अगर मेसेज भेजना ही है तो खुद से लिख के भेज लो और उसीको भेजो जो आपको पता है कि उसे पढ़ेगा। लेकिन नही फ़्री का व्हाट्सएप्प मिला है तो धुंआ धुंआ कर दो। हद्द है। भाई, बहुत रेयर ही कोई पढ़ता या देखता है इन्हें। बाद में बैठ के डिलिट् करते रहने का तनाव अलग। मत भेजिए।
और अगर संभव हो तो दीवाली के कुछ फोटो ले लीजिए, फ़ोटो के लिए दीवाली मत बनाइए। जाइए, दीए और मोमबत्ती की खुशबू को महसूस करिए। छत और आंगन में खड़ा होकर रोशनी का आनंद लीजिए। गांव में है तो खुशकिस्मत है कि आपकी दुनिया ड्राइंग हाल और बालकनी से बड़ी है। जाइए, इनार (कुआं), बखार, नाद, बथान, नीम, आँवला, पीपल का पेड़ और बाकी सब जगह दीया, मोमबत्ती जलाइए। रोशनी से लहलहा दीजिए गांव को।
जाइए, प्यार बांटिए। अब टीवी के प्रचार में गार्ड को चॉकलेट देने को बोल दिया तो इसका मतलब वो दीवाली का बरहम (ब्रह्म) बाबा थोड़े न होगया की जो जाए टिका लगा जाए। अरे वो कितना चॉकलेट खाएगा भाई। दिखावे से बाहर निकलिए और अपने अपने घर या दालान के किसी कोने में सिमटे काका, बाबा, इया, दादी, फुआ और बाकी पुरनियाँ लोगो के पैर छुइये, उनके साथ कुछ वक्त बिताइए। अपनो से गले मिलिए, गाल में गाल सटाके कितना सेल्फी लीजियेगा। और करिएगा क्या इन फोटोज का।
सोचिएगा दीवाली कैसी हो? व्हाट्सएप्प वाली? सेल्फी वाली? या दीवाली हो दिलवाली?
शुभ दीपावली।
Written by Anshuman Mishra
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