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Tuesday, June 26, 2018

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👉1 - गर्म भोजन के तुरंत बाद ठंडा पानी पीना। यह पानी ऐसे क्रिस्टल निर्माण करता है,जो ब्लॉकेज बनाने में सहायक होते हैं।2 - जटिल हाइड्रोजनीकरण युक्त वसा, और चर्बी वाले खाद्य, जैसे आइसक्रीम, फास्टफूड, इत्यादि का सेवन।                       3 - आलस्य, श्रम न करने की प्रवृत्ति और वातानुकूलित जीवन का अभ्यास।              4 - प्लास्टिक का उपयोग, चाहे वह किसी भी रूप में हो।    5 - स्थानीय फल, सब्जी, खाद्य, जल, वायु आदि की उपेक्षा कर ग्लोबल स्टैंडर्ड के अनुसार उपयोग या भोग। जैसे राजस्थान में नारियल पानी की बजाय तरबूज का उपयोग करना चाहिए।                     6 - हरेक खाद्य में नमक, शक्कर अथवा तेल का प्रयोग।एक बार इनका त्याग करके वस्तुओं को उनके मूल स्वाद में खाना सीखिये।            7 - कृत्रिम, सिंथेटिक कार्बनिक पदार्थों का परित्याग करें, चाहे वह रंग, सुगंध, दवाई आदि ही क्यों न हो।अंत में,जीवन के भविष्य निर्धारण का 90% भाग गर्भधारण से लेकर जन्म के दसवें दिन तक में ही हो जाता है। उसके बाद वाले प्रयत्नों का योगदान बहुत नगण्य है। तो ऐसा कौन ध्यान देता है?उदाहरण के लिए गर्भस्थ शिशु के व्यायाम की क्या व्यवस्था है ? घरेलू चक्की ऐसा साधन था जो गर्भस्थ भ्रूण को न केवल व्यायाम करवाता था, नॉर्मल डिलीवरी भी होती थी। और घट्टी के एंटी क्लॉक वाइज घूर्णन के साथ, उसके मस्तिष्क में क्लॉक वाइज पॉजिटिव तरंगों का उद्गार होता था। बड़े से बड़े परिवार की बहुएं भी चक्की अवश्य चलाती थीं। प्रायः उनका समय ब्रह्ममुहूर्त होता था।यदि, आज कोई गर्भवती महिला हथचक्की चला रही है, तो जानिए कि वह कोई बैकवर्ड नहीं है, बल्कि महाफॉर्वर्ड है।क्योंकि आगामी 50 वर्ष के बाद वर्तमान जनसंख्या वाले मानवीय जीव जब अपने शरीरों को कटा फटा, ढेर सारी औषधियों से पेट भर कर, सुस्त कीड़े की तरह नाममात्र की चलती स्वांस के साथ कराह रहे होंगे, इस माता का बच्चा (यदि उपरोक्त वर्जनाओं का पालन करता रहा तो) सुपरहीरो की तरह राज कर रहा होगा।
1 - गर्म भोजन के तुरंत बाद ठंडा पानी पीना।
यह पानी ऐसे क्रिस्टल निर्माण करता है जो ब्लॉकेज बनाने में सहायक होते हैं।
2 - जटिल हाइड्रोजनीकरण युक्त वसा, और चर्बी वाले खाद्य, जैसे आइसक्रीम, फास्टफूड, इत्यादि का सेवन।
3 - आलस्य, श्रम न करने की प्रवृत्ति और वातानुकूलित जीवन का अभ्यास।
4 - प्लास्टिक का उपयोग, चाहे वह किसी भी रूप में हो।
5 - स्थानीय फल, सब्जी, खाद्य, जल, वायु आदि की उपेक्षा कर ग्लोबल स्टैंडर्ड के अनुसार उपयोग या भोग।
जैसे राजस्थान में नारियल पानी की बजाय तरबूज का उपयोग करना चाहिए।
6 - हरेक खाद्य में नमक, शक्कर अथवा तेल का प्रयोग।
एक बार इनका त्याग करके वस्तुओं को उनके मूल स्वाद में खाना सीखिये।
7 - कृत्रिम, सिंथेटिक कार्बनिक पदार्थों का परित्याग करें, चाहे वह रंग, सुगंध, दवाई आदि ही क्यों न हो।
अंत में,
जीवन के भविष्य निर्धारण का 90% भाग गर्भधारण से लेकर जन्म के दसवें दिन तक में ही हो जाता है। उसके बाद वाले प्रयत्नों का योगदान बहुत नगण्य है।
तो ऐसा कौन ध्यान देता है?
उदाहरण के लिए गर्भस्थ शिशु के व्यायाम की क्या व्यवस्था है ?
घरेलू चक्की ऐसा साधन था जो गर्भस्थ भ्रूण को न केवल व्यायाम करवाता था,
नॉर्मल डिलीवरी भी होती थी।
और घट्टी के एंटी क्लॉक वाइज घूर्णन के साथ, उसके मस्तिष्क में क्लॉक वाइज पॉजिटिव तरंगों का उद्गार होता था।
बड़े से बड़े परिवार की बहुएं भी चक्की अवश्य चलाती थी।
प्रायः उनका समय ब्रह्ममुहूर्त होता था।
यदि, आज कोई गर्भवती महिला हथचक्की चला रही है तो जानिए कि वह कोई बैकवर्ड नहीं है, बल्कि महाफॉर्वर्ड है।
क्योंकि आगामी 50 वर्ष के बाद वर्तमान जनसंख्या वाले मानवीय जीव जब अपने शरीरों को कटा फटा, ढेर सारी औषधियों से पेट भर कर, सुस्त कीड़े की तरह नाममात्र की चलती स्वांस के साथ कराह रहे होंगे, इस माता का बच्चा (यदि उपरोक्त वर्जनाओं का पालन करता रहा तो) सुपरहीरो की तरह राज कर रहा होगा।
भारत को खतरा न दलितों से है, न सवर्णों से।
उन्हें खतरा है स्वयं के श्लथ हो जाने से। मुटियाने से।
भोग साधनों के बीच रहते हुए भी भोग में असमर्थ जीवन जीने से।
इसी को नपुंसकता कहा जाता है।
आधुनिक विकारों के मूल में प्रमुख कारण यह असामर्थ्य ही है।

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