सूरज सा तेज नही मुझमे,
दीपक सा जलता देखोगे ,
अपनी हद रोशन करने से,
तुम मुझको कब तक रोकोगे,
मैं उस माटी का वृक्ष नही जिसको नदियों ने सीचा है,
बंजर भूमि में पलकर मैने मृत्यु से जीवन सींचा है,
मैं पत्थर पे लिखी इबारत हु,
शीशे से कब तक तोड़ोगे,
मिटने वाला मैं नाम नही
तुम मुझको कब तक रोकोगे,
इस जग में जितने जुल्म नही,
उतने सहने की ताकत है,
तानो के भी शोर में रहकर,
सच कहने की आदत है,
मै सागर से भी गहरा हु,
तुम कितने कंकड़ फेकोगे ,चुन चुन के आगे बढूंगा मैं,
तुम कितना मुझको रोकोगे,
झुक झुक कर सीधा खड़ा हुआ ,
अब फिर झुकने का शौक नही,
अपने ही हाथों रचा स्वयं ,
तुमसे मिटने का खौफ नही,
तुम हालातो की भट्टी में जब जब भी मुझको झोंकोगे ,
तप तप के सोना बनूँगा में ,तुम मुझको कब तक रोकोगे,
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